फली सैम नरीमन बायोग्राफी

fali sam nariman biography in hindi | फली सैम नरीमन बायोग्राफी

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फली सैम नरीमन

भारतीय न्यायपालिका के भीष्म पितामह कहे जाने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता व भारत के जाने-माने कानूनविद थे। उन्होंने 1950 में बॉम्बे हाई कोर्ट में वकालत की शुरुआत की । और बाद में दिल्ली चले गये जहाँ उन्हें 1971 मे भारत के सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील के रूप में नियुक्त किया गया था उन्हें मई 1972 में  भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के रूप में नियुक्त किया गया लेकिन 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आपातकाल घोषित करने के फैसले के विरोध में उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। 1991 से 2010 तक बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष थे।  नरीमन एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त न्यायविद थे अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता पर, उन्हें लोक प्रशासन में उत्कृष्टता के लिए 2018 में  19वें लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने अपने 70 साल के न्याय जगत में कई प्रमुख मामलों की पैरवी की थी। जिसमें राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग, भोपाल गैस त्रासदी मामला भी शामिल था, उन्होंने भोपाल गैस कांड की आरोपी कंपनी का बचाव किया था बाद में उन्होंने इसके लिए खेद भी जताया था

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

फली सैम नरीमन  का जन्म 10 जनवरी 1929  में रंगून (वर्तमान यांगून, म्यांमार) में एक पारसी परिवार में हुआ था इनके पिता का नाम सैम बरियामजी नरीमन और माता का नाम बानो नरीमन था। फली ने अपनी स्कूली शिक्षा बिशप कॉटन स्कूल, शिमला से की। इसके बाद उन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज, मुंबई से अर्थशास्त्र और इतिहास में स्नातक की उपाधि प्राप्त की, उसके बाद 1950 में गवर्नमेंट लॉ कॉलेज, मुंबई से कानून की डिग्री (एलएलबी) में प्रथम स्थान प्राप्त करने के बाद और उन्हें किन्लॉक फोर्ब्स गोल्ड से सम्मानित किया गया। बार और बेंच को दिए एक साक्षात्कार में, श्री नरीमन ने कहा था कि “कानून मेरे लिए आखिरी विकल्प था”। उनके पिता शुरू में चाहते थे कि वे भारतीय सिविल सेवा परीक्षा लिखें। चूँकि वह उस समय इसका खर्च वहन नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने कानून को अपने अंतिम विकल्प के रूप में चुना। फली एस नरीमन की शादी 1955 में बाप्सी एफ. नरीमन से हुई थी और उनके दो बच्चे, बेटा रोहिंटन नरीमन व बेटी अनाहिता थे। उनकी विरासत को उनके बेटे रोहिंटन नरीमन ने आगे बढ़ाया है, जो एक वरिष्ठ वकील और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में उनके नक्शेकदम पर चले उनकी पत्नी बापसी नरीमन का 2020 में निधन हो गया था

कैरियर:

1950 में  मुंबई से कानून की डिग्री प्राप्त करने के बाद नरीमन ने बॉम्बे हाई कोर्ट से अपनी वकालत कि  शुरूआत की। 22 वर्षों तक अभ्यास करने के बाद, उन्हें 1971 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ वकील (सीनियर अधिवक्ता) नियुक्त किया गया। उन्होंने कहा कि “मेरे वरिष्ठ (सीनियर) जमशेदजी कांगा मेरे गुरु थे। वह मेरे लिए पिता तुल्य थे। उनका 93 वर्ष की आयु में निधन हो गया और वह अभी भी वही हैं, जिन्होंने 92 साल की उम्र में मुझसे कहा था कि वह अभी भी सीख रहे हैं। मई 1972 में उन्हें भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के रूप में नियुक्त किया गया था। परन्तु उन्होंने 26 जून, 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा देश में आपात काल के एक दिन बाद ही इसके विरोध में अपने पद से इस्तीफा दे दिया।  

1988 से इंटरनेशनल कमीशन ऑफ ज्यूरिस्ट्स के मानद सदस्य रहे तथा 1988 से लंदन कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया था।  1989 से, इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स के आंतरिक मध्यस्थता न्यायालय के उपाध्यक्ष रहे।  उन्होंने 1994 से अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता परिषद के अध्यक्ष पद पर चुना गया। 1991 से 2010 तक बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया तथा नवंबर 1999 में व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के बोर्ड, और 1995 से 1997 तक न्यायविदों के अंतर्राष्ट्रीय आयोग की कार्यकारी समिति के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया 

राजनीतिक जीवन:

तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा उन्हें नवंबर 1999 में राज्यसभा के सदस्य के रूप में भी नामित किया गया । नागरिक स्वतंत्रता और धर्मनिरपेक्षता के प्रबल समर्थक होने के साथ ही, वह प्रसिद्ध रूप से मुखर व्यक्ति थे जो निसंकोच विभिन्न मुद्दों पर बेबाकी से अपनी बात रखते थे। दशकों तक वकीलों के लिए मार्गदर्शक रहे नरीमन के लिए यह मायने नहीं रखता था कि सत्ता में कौन है

प्रमुख मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका

उन्होंने एक अधिवक्ता व जज के रूप में कई ऐतिहासिक निर्णयों में भूमिका निभाई। इनमे ‘केशवानंद भारती मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता नानाभाई पालकीवाला की सहायता की थी। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 1973 के इस मामले फैसले में संविधान के ‘आधारभूत ढांचे का सिद्धांत“ को प्रतिपादित किया, संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति को कम कर दिया, साथ ही न्यायपालिका को इसके उल्लंघन के आधार पर किसी भी संशोधन की पुनर्विलोकन करने का अधिकार दिया।

इसके अलावा उन्होंने 1984 के भोपाल गैस त्रासदी मामले में, यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन कंपनी के पक्ष में पैरवी की । कंपनी से एक ज़हरीली गैस मिथाइलआइसोसाइनेट (MIC) का रिसाव हुआ, जिससे लगभग 15000 से अधिक लोगों की जान गई । इसके मामले के लिए उन्होंने बाद में स्वीकार किया कि यह एक गलती थी।, हालांकि उन्होंने कोर्ट के बाहर पीड़ितों व कंपनी के मध्य समझौता कराने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें पीड़ितों को 470 मिलियन डॉलर की राशि की पेशकश की गई। 

1999 में नर्मदा पुनर्वास मामले गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व किया, परन्तु ईसाई समुदाय पर हमलों और बाइबिल की प्रतियां जलाने की खबरों के बाद इस्तीफा दे दिया। उन्होंने प्रसिद्ध टीएमए पाई मामले, तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता आय से अधिक संपत्ति मामले 2014 सजा के मामले में पेश हुए, और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के मामले में पेश हुए और बहस की, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था।

टीएमए पाई फाउंडेशन मामले में शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 19(1)(जी) के तहत निजी शैक्षणिक संस्थानों की स्वायत्तता को मान्यता दी, और उन्हें अत्यधिक सरकारी हस्तक्षेप के बिना संचालित करने की अनुमति दी। वह राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के चर्चित मामले से भी जुड़े रहे। इस आयोग को सुप्रीम कोर्ट ने भंग कर दिया था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट एओआर एसोसिएशन के प्रसिद्ध मामले में भी बहस की, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति का अधिकार अपने हाथ में ले लिया था। 

पुरस्कार:

नरीमन के जीवन और कार्य को कई पुरस्कारों के माध्यम से मान्यता दी गई है, उनको भारत के राष्ट्रपति द्वारा 2007 में पद्म विभूषण और 1991 में पद्म भूषण से नाबजा गया  जो नागरिको  को दिया जाने वाला दूसरा और तीसरा सर्वोच्च सम्मान था। दोनों पुरस्कार न्यायशास्त्र और सार्वजनिक मामलों में उनके योगदान के लिए दिए गए थे।  2002 में उन्हें न्याय के लिए ग्रुबर पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था  उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू से 19वां लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करना एक कानूनी विशेषज्ञ के रूप में उनकी स्थिति को और मजबूत करता है

विस मूट ईस्ट का फली नरीमन पुरस्कार :

यह पुरस्कार फली एस नरीमन के नाम पर रखा गया है। यह पुरस्कार युवा कानूनी दिमागों को प्रेरित करता है, जो कानून के क्षेत्र में नरीमन के स्थायी प्रभाव का प्रतीक है। जैसे-जैसे नरीमन की यात्रा आगे बढ़ती है, उनका जीवन कानूनी पेशे में भावी पीढ़ियों के लिए उत्कृष्टता और अखंडता का प्रतीक बना हुआ है

प्रेस स्वतंत्रता पर जताई थी चिंता:

प्रखर न्यायविद फली एस. नरीमन अपने निधन से ठीक 12 दिन पहले 09.02.2024 को एक समारोह को संबोधित करते हुए कहा था कि एक ‘असंतुष्ट प्रेस, एक ‘स्वतंत्र प्रेस है और यह लोकतंत्र के लिए जरूरी है। उन्होंने प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत की रैंक में गिरावट को लोकतंत्र के लिए गंभीर चिंता का विषय बताया था।

आत्मकथा:

प्रखर न्यायविद होने के साथ ही, वरिष्ठ अधिवक्ता फली एस नरीमन एक कुशल लेखक भी थे। उनकी आत्मकथा ‘बिफोर द मेमोरी फेड्स को देशभर में वकालत की शुरुआत करने वाले वकीलों के लिए एक पेशेवर मार्गदर्शिका कहा जाता है। उन्होंने ‘द स्टेट ऑफ द नेशन ‘इंडियाज लीगल सिस्टम: कैन इट बी सेव्ड? और ‘गॉड सेव दि हॉनरेवल सुप्रीम कोर्ट प्रमुख किताबें हैं।

मृत्यु:

वरिष्ठ अधिवक्ता फली एस नरीमन का 21.02.2024 को 95 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वह हृदय रोग सहित विभिन्न बीमारियों से पीड़ित थे। उनका अंतिम संस्कार सुबह 10 बजे पारसी आरामगाह, खान मार्केट के पास, नई दिल्ली में किया गया ।

 

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